विजय दिवस- हमारे वीर जवानों की अदम्य बहादुरी, अटूट संकल्प और सर्वोच्च बलिदान की अमर गाथा*
1971 का युद्ध, भारतीय शौर्य, साहस और राष्ट्रभक्ति का अमर अध्याय*
परमार्थ निकेतन, विजय दिवस के इस पावन अवसर पर 1971 के युद्ध में अपने प्राणों की आहुति देने वाले सभी वीर सपूतों को भावपूर्ण नमन करता है*
ऋषिकेश, 16 दिसम्बर। आज विजय दिवस के पावन अवसर पर परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने आज की दिव्य गंगा आरती देश के बहादुर जवानों को समर्पित की। इस अवसर पर उन्होंने भावपूर्ण शब्दों में कहा कि हमारे सैनिक वेतन के लिए नहीं, वतन के लिए लड़ते हैं। वे किसी दल के लिए नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए जीते हैं।
उन्होंने कहा कि उत्तराखंड ऐसा राज्य है जहाँ लगभग हर परिवार से कोई न कोई सदस्य सेना में सेवा देता रहा है। उत्तराखंड केवल एक भौगोलिक क्षेत्र नहीं, बल्कि यह सैनिकों की भूमि, सेना की भूमि, शौर्य की भूमि और शांति की भूमि है।
स्वामी जी ने कहा कि हमारे वीर जवानों का जीवन त्याग, तप और राष्ट्रभक्ति का जीवंत उदाहरण है। उनकी वीरता और बलिदान के कारण ही आज देश सुरक्षित है और हम स्वतंत्रता के साथ जीवन जी पा रहे हैं। विजय दिवस हमें अपने सैनिकों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने और उनके आदर्शों को जीवन में उतारने की प्रेरणा देता है।
1971 का युद्ध भारतीय इतिहास का वह स्वर्णिम अध्याय है, जिसने न केवल भारत की सैन्य शक्ति को विश्व पटल पर स्थापित किया, बल्कि यह सिद्ध कर दिया कि जब राष्ट्र एकजुट होता है, तो कोई भी शक्ति उसके आत्मसम्मान और संप्रभुता को चुनौती नहीं दे सकती। यह युद्ध हमारे वीर जवानों की अदम्य बहादुरी, अटूट संकल्प और सर्वोच्च बलिदान की अमर गाथा है, जिसने भारत को एक ऐतिहासिक और निर्णायक विजय दिलाई।
16 दिसंबर 1971 को प्राप्त हुई यह विजय केवल एक सैन्य सफलता नहीं थी, बल्कि यह मानवीय मूल्यों, न्याय और सत्य की भी जीत थी। लगभग 13 दिनों तक चले इस युद्ध में भारतीय सशस्त्र बलों, थलसेना, नौसेना और वायुसेना, ने अद्भुत सामंजस्य, रणनीतिक कौशल और असाधारण साहस का परिचय दिया। परिणामस्वरूप, पाकिस्तान की लगभग 93,000 सैनिकों की आत्मसमर्पण की घटना इतिहास में दर्ज हुई, जो द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सबसे बड़ा सैन्य आत्मसमर्पण माना जाता है। इसी युद्ध के फलस्वरूप बांग्लादेश का जन्म हुआ और भारत ने क्षेत्रीय स्थिरता व मानवाधिकारों की रक्षा में निर्णायक भूमिका निभाई।
1971 का युद्ध हमारे वीर जवानों के लिए केवल रणभूमि नहीं था, बल्कि यह राष्ट्र के प्रति कर्तव्य, सम्मान और बलिदान का महायज्ञ था। कठिन भौगोलिक परिस्थितियाँ, सीमित संसाधन और निरंतर खतरे के बावजूद हमारे सैनिकों ने अद्भुत धैर्य और साहस का परिचय दिया। चाहे वह लोंगेवाला की रेत हो, पूर्वी मोर्चे की नदियाँ हों या समुद्री सीमाओं की सुरक्षा, हर मोर्चे पर भारतीय जवानों ने शौर्य की ऐसी मिसालें कायम कीं, जो आने वाली पीढ़ियों को सदैव प्रेरित करती रहेंगी।
इस ऐतिहासिक विजय के पीछे केवल सैन्य शक्ति ही नहीं, बल्कि एक सशक्त नेतृत्व, स्पष्ट दृष्टि और राष्ट्रीय एकता की भावना भी थी। देशवासियों का अटूट विश्वास, सैनिकों के परिवारों का त्याग और नागरिकों का सहयोग, इन सभी ने मिलकर इस विजय को संभव बनाया। यह युद्ध हमें यह स्मरण कराता है कि भारत की शक्ति उसकी सेना के साथ-साथ उसके नागरिकों की एकता और संकल्प में भी निहित है।
विजय दिवस हमें केवल अतीत की गौरवगाथा याद दिलाने का अवसर नहीं देता, बल्कि यह हमें वर्तमान और भविष्य के प्रति भी सजग करता है। यह दिन हमें यह संकल्प लेने की प्रेरणा देता है कि हम अपने राष्ट्र की अखंडता, संप्रभुता और मूल्यों की रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहेंगे। हमारे वीर जवान आज भी सीमाओं पर उसी निष्ठा और साहस के साथ डटे हैं, जिस भावना ने 1971 में भारत को विजय दिलाई थी।
परमार्थ निकेतन, विजय दिवस के इस पावन अवसर पर 1971 के युद्ध में अपने प्राणों की आहुति देने वाले सभी वीर सपूतों को भावपूर्ण नमन करता है। हम उन शहीदों के प्रति कृतज्ञ हैं, जिनके बलिदान के कारण आज हम स्वतंत्र, सुरक्षित और आत्मसम्मान के साथ जीवन जी रहे हैं। साथ ही, हम उन सभी पूर्व सैनिकों और सेवारत जवानों का भी अभिनंदन करते हैं, जो राष्ट्रसेवा को अपना सर्वोच्च धर्म मानते हैं।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि हम सभी को राष्ट्र की आवाज और सांस्कृतिक धरोहर का संवाहक बनाना होगा, सदैव देश की गौरवशाली परंपराओं, वीरता की कथाओं और राष्ट्रीय मूल्यों को आज की युवा शक्ति तक पहुँचाने के लिए प्रतिबद्ध होना होगा। विजय दिवस के माध्यम से हम नई पीढ़ी को यह संदेश देना चाहते हैं कि देशभक्ति केवल शब्दों में नहीं, बल्कि कर्तव्य, अनुशासन और समर्पण में निहित होती है।
आइए, इस विजय दिवस पर हम सब मिलकर अपने वीर जवानों के शौर्य को नमन करें, उनके बलिदान को स्मरण करें और यह संकल्प लें कि हम एक जिम्मेदार नागरिक के रूप में राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान देंगे। 1971 की विजय हमें यह सिखाती है कि भारत की आत्मा अडिग है, उसका संकल्प अटूट है और उसकी रक्षा में खड़ा हर सैनिक हमारे राष्ट्र का गर्व है।
