नॉनवेज व्यक्तियों द्वारा किया गया सबसे बड़ा भ्रामक प्रचार यह है कि विटामिन B12 को प्राप्त करने का एकमात्र जरिया मांस ही है, जो सरासर झूठ है। वास्तव में, कोई पशु B12 का निर्माण खुद से नहीं करता है। B12 का निर्माण भूमि और पानी में पाए जाने वाले कुछ विशेष सूक्ष्मजीवों द्वारा होता है। जमीन से शाक उखाड़ कर खाने अथवा पशुओं द्वारा भूमि चरते वक़्त इन सूक्ष्मजीवों के ग्रहण से इंसानों तथा पशुओं को B12 की प्राप्ति होती थी।
दूसरा सबसे बड़ा झूठ यह है कि वनस्पति में जीवन के लिए आवश्यक सभी 20 एमिनो तत्व नहीं होते। यह भी सिरे से झूठी बात है। वास्तव में, सिर्फ़ और सिर्फ वनस्पति ही सभी एमिनो तत्वों का निर्माण स्वयं से करने में सक्षम होती है। मनुष्य हों, अथवा जानवर – कोई जीव इन तत्वों को खुद से नहीं बना सकता, सिर्फ़ वनस्पति से ग्रहण कर सकता है।
अगर आपको वास्तव में लगता हो कि प्लांट बेस्ड भोजन से कोई कुपोषित रह सकता है तो शाकाहारी जीवों को देखिए। इनमें से कोई भी कुपोषित है क्या? मांस खाने वाले शाकाहारी हाथी-घोड़े का मुकाबला कभी कर सकते हैं?
मांसाहारी व्यक्ति ढेरों उदाहरण देते हुए आपको “नफरती” घोषित करेगा अथवा यह प्रलाप करेगा कि – जिसको जो खाना है, खाने दो। नैतिकता, दया अथवा पर्यावरण से हमारा क्या लेना-देना?
जंजीरों से बंधे होकर हत्यारों से घिरे होना क्या होता है। किस तरह पशुओं के आर्तनाद को दरकिनार कर उनको जिबह किया जाता है। उनके दर्द को महसूस न करने वाले लोगों से जीव दया पर कुछ ज्यादा उम्मीद भी क्या की जा सकती है। किसी की बेबसी पर ठहाके लगाने वाला दुनिया में सबसे निकृष्टतम प्राणी होता है। पशुओं की चिंता तो वही कर सकता है, जो चेतना के तल पर स्वयं पशु होने की अनुभूति कर सकता हो।
इंसानों की दुनिया में इंसान होना बड़ा आसान है।
पशु होकर सोच पाने के लिए रीढ़ की हड्डी चाहिए होती है।
नववर्ष पर शाकाहारी होने और जीवों पर दया करने का संकल्प लें।