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मकर संक्रांति यानि उत्तरायणी पर्व पर विशेष,’लोक पर्व काले कौवा यानि घुघुतिया’

सुनील दत्त पांडेय वरिष्ठ पत्रकार

उत्तराखंड मनुष्य और प्रकृति का रिश्ता चोली दामन का है। दोनों का जुड़ाव भावनात्मक होने के साथ-साथ सांस्कृतिक,सामाजिक और आध्यात्मिक है। उत्तराखंडवासियों का प्रकृति से विशेष प्रेम है।

इस पर्वतीय क्षेत्र की वनस्पतियां, जीव जंतु लोकमानस से जुड़े हुए हैं और यहां की दंत कथाओं में यहां के त्योहारों में जीव जंतुओं और मनुष्यों के बीच एक अद्भुत और अनोखा रिश्ता देखने को मिलता हैं, जो इस पर्वतीय क्षेत्र की संस्कृति को और अधिक समृद्ध बनाता है। इसी परंपरा में उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में मकर संक्रांति पर ‘घुघुतिया’ नामक एक त्योहार बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाता है। इस लोक पर्व की अपनी अलग ही विशिष्ट पहचान है। और इस त्योहार का मुख्य केंद्र और मुख्य आकर्षण कौवा होता है। और यह त्योहार कुमाऊं में काले कौवा के नाम से अत्यधिक प्रचलित है। कुमाऊं के बच्चों को इस त्यौहार का साल भर इंतजार रहता है और बच्चे इस दिन बनाए गए घुघुते यानी शक्कर पारे काले कौवे को खिलाते हैं और और बड़े प्यार से काले कौवे को बुलाते हैं और कहते हैं- ‘काले कौवा काले घुघुति माला खा ले’।


मकर राशि में सूर्य के प्रवेश करने पर उत्तरायण शुरू होता है। इसीलिए अंतरिक्ष की इस खगोलीय प्रक्रिया को मकर संक्रांति कहते हैं और पहाड़ों में इसे उत्तरायणी कहा जाता है,क्योंकि सूर्य दक्षिण से उत्तर की ओर प्रस्थान करते हैं, जिससे सर्दियों की विदाई की शुरुआत होती है। शीतकाल में पहाड़ों में अत्यधिक ठंड की वजह से पक्षी मैदानी क्षेत्र की ओर चले जाते हैं और मकर संक्रांति में उनका पहाड़ों में लौटने का क्रम शुरू हो जाता है।ेे माना जाता है कि कौवा सबसे पहले मैदान से पहाड़ों की ओर लौटता है और उत्तरायणी के दिन पर्वतीय क्षेत्र में लौटने पर काले कौवे का स्वागत पकवान खिलाकर किया जाता है। कुमाऊं में घरों में महिलाएं मकर संक्रांति या उससे एक दिन पहले गुड़, आटे और देसी घी से बने घुघुते यानी शक्कर पारे बनाती है और इनकी माला बनाती है। कुछ महिलाएं इन मालाओं में संतरे और मखाने भी पिरोती हैं।


काले कौवा लोक पर्व को लेकर एक प्रचलित कथा भी जुड़ी हुई है। इस लोक कथा के अनुसार उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में चन्द्र वंश के राजा राज करते थे। इन राजाओं में एक राजा कल्याण चंद की कोई संतान नहीं थी। उनका कोई उत्तराधिकारी भी नहीं था। इस राजा का एक मंत्री राजा के बाद राज्य मिलने के सपने संजोए हुए था। कहते हैं कि राजा कल्याण चंद अपनी रानी के साथ बागेश्वर में बाघनाथ मंदिर में संतान के लिए प्रार्थना करने गए। बागनाथ की अनुकंपा से उनको संतान के रूप में एक बेटा प्राप्त हुआ और जिसका नाम निर्भयचंद रखा गया। निर्भय को उसकी मां प्यार से ‘घुघुति’ के नाम से बुलाया करती थी। घुघुति के गले में एक मोती की माला थी, जिसमें घुंघुरू लगे हुए थे। इस माला को पहनकर घुघुति बहुत खुश रहता था। जब वह किसी बात पर जिद करता तो उसकी मां उससे कहती कि जिद मत कर, नहीं तो माला काले कौवा ले जाएगा। अपने लाडले प्यारे से बच्चे को डराने के लिए उसकी मां कहती कि ‘काले कौवा काले घुघुति माला खा ले’। यह सुनकर कई बार कौवा आ जाता जिसको देखकर घुघुति जिद छोड़ देता। जब मां के बुलाने पर कौवे आ जाते तो वह उनको कोई चीज खाने को दे देती। धीरे-धीरे घुघुति की कौवों के साथ मित्रता हो गई। वहीं दूसरी ओर राजपाट की कल्पना लगाने वाला मंत्री अपने कुछ साथियों के साथ राजा के बेटे घुघुति को मारने का षड्यंत्र रचने लगा। एक रोज़ जब बालक घुघुति खेल रहा था, तब मंत्री अपने कुछ साथियों के साथ उसे चुप-चाप उठाकर ले गया। जब वह घुघुति को जंगल की ओर लेकर जा रहा था, तो एक कौवे ने उसे देख लिया और जोर-जोर से कांव-कांव करने लगा। उसकी आवाज सुनकर घुघुति जोर-जोर से रोने लगा और अपनी माला को उतारकर दिखाने लगा और सभी कौवे इकट्ठे हो गए और मंत्री और उसके साथियों पर मंडराने लगे। एक कौवा घुघुति के हाथ से माला झपटकर ले गया। सभी कौवों ने एक साथ मंत्री और उसके साथियों पर अपनी चोंच और पंजों से आक्रमण कर दिया। मंत्री और उसके साथी डर कर भाग गए और राजा के बालक को जंगल में ही छोड़ कर चले गए।बालक घुघुति जंगल में अकेला रह गया। वह एक पेड़ के नीचे बैठ गया तथा सभी कौवे भी उसकी रक्षा के लिए उसी पेड़ में बैठ गए। जो कौवा हार लेकर गया था, वह सीधे महल में जाकर एक पेड़ पर माला टांगकर जोर-जोर से कांव-कांव करने लगा। जब लोगों की नजरें उस पर पड़ीं तो उसने घुघुति की माला घुघुति की मां के सामने डाल दी। माला सभी ने पहचान ली। इसके बाद कौवा एक डाल से दूसरी डाल में उड़ने लगा। वहां लोगों ने यह अनुमान लगाया कि कौवा घुघुति के बारे में कुछ जानता है। राजा और उसके घुडसवार कौवे के पीछे लग गए। कौवा आगे-आगे और घुड़सवार पीछे-पीछे। कुछ दूर जाकर कौवा एक पेड़ पर बैठ गया।राजा ने देखा कि पेड़ के नीचे उसका बेटा सोया हुआ है और पेड़ के चारों ओर कौवे बैठे हुए उसकी रक्षा कर रहे हैं,उसने बेटे को उठाया, गले से लगाया और घर को लौट आया। और अपने बालक को देखकर रोती बिलखती घुघुति की मां के मानो प्राण लौट आए हो। मां ने घुघुति की माला दिखाकर कहा कि आज यह माला नहीं होती तो घुघुति जीवित नहीं रहता। घुघुति के मिल जाने पर उसकी रानी मां ने बहुत सारे पकवान बनाए और घुघुति से कहा कि ये पकवान अपने दोस्त कौवों को बुलाकर खिलाएं, घुघुति ने कौवों को बुलाकर सभी पकवान खुशी-खुशी खिलाएं तथा राजा और रानी ने अपने बालक की रक्षा करने पर कौवा का आभार व्यक्त किया। यह बात धीरे-धीरे कुमाऊं में फैल गई और इस घटना ने उस दिन से बच्चों के त्योहार काले कौवा का रूप ले लिया। तब से हर साल मकर संक्रांति और उससे अगले दिन कुमाऊं में काले कौवा लोक पर्व धूमधाम से मनाने की परंपरा शुरू हो गई जो अब तक चली आ रही हैं। इस लोक पर्व की जड़े इतनी गहरी और सुदृढ़ है कि प्रवासी उत्तराखंडी भी अपने-अपने क्षेत्रों में काले कौवे का लोक पर्व उत्साह के साथ मनाते हैं।
‌‌ मीठे आटे से बने पकवान ‘घुघुत’ की माला पहनकर कुमाऊंनी बच्चे मकर संक्रांति और उससे अगले दिन कौवे को बुलाते हैं और लोकगीत गाते हैं,
‘काले कौवा काले घुघुति माला खा ले’।
‘लै कौवा भात में कै दे सुनक थात’।
‘लै कौवा लगड़ में कै दे भैबनों दगड़’।
‘लै कौवा बौड़ मेंकै दे सुनौक घ्वड़’।
‘लै कौवा क्वे मेंकै दे भली भली ज्वे’।
काले कौवा लोक पर्व के बारे में कुमाऊं क्षेत्र में एक कहावत अत्यधिक प्रचलित है कि श्राद्धों में ब्राह्मण और उत्तरायनी को कौवे बड़ी मुश्किल से मिलते हैं। मकर संक्रांति के दिन नदियों के संगम में स्नान करने का विशेष महत्व है। उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल में देवप्रयाग में भागीरथी और अलकनंदा के संगम गंगा में स्नान का विशेष महत्व है। और गढ़वाल और कुमाऊं में मकर संक्रांति के दिन विभिन्न क्षेत्रों में प्रसिद्ध उत्तरायणी मेला शुरू होता है। प्रयागराज और हरिद्वार के कुंभ मेलों में कुंभ के स्नान पर्व की शुरुआत मकर संक्रांति के स्नान से शुरू होती है। मकर संक्रांति का इतना अधिक महत्व है कि अपने प्राण त्यागने के लिए गंगा पुत्र भीष्म पितामह छह माह तक सरसैया में लेटे रहे और उत्तरायण यानी मकर संक्रांति की प्रतीक्षा करते रहें और उत्तरायण शुरू होने पर उन्होंने अपने प्राण त्यागे और धरा धाम से परलोक यानि विष्णु लोक की ओर प्रस्थान किया। कहा जाता है कि जो मनुष्य उत्तरायण में प्राण त्यागते हैं, उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है।
साभार- जनसत्ता

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