Uttarakhand

  कम खाइए, ग़म खाइए

-सुदेश आर्या

एक पुरानी कहावत है, “कम खाइए ग़म खाइए” कुछ व्यक्तियों को हर समय कुछ न कुछ खाने की प्रबल इच्छा या धुन बनी रहती है, पेट भरा होता है किंतु फिर भी खाने का मन करता है।

स्वाभाविक भूख शरीर की अनिवार्य आवश्यकता है तथा खाने की इच्छा विकृत मन की स्थिति।

प्रायः व्यक्ति पेट भरा होने पर भी चटपटी मिठाइयां व मनपसंद पदार्थों के दिखने पर कोई न कोई बहाना बनाकर खा ही लेता है। यह एक प्रकार का रोग है इसे आयुर्वेद में भस्मक रोग कहा जाता है। इस रोग में व्यक्ति को पेट भरा होने पर भी ऐसा लगता है कि भूख लगी है जबकि भूख नहीं वह प्यास लगी होती है। परंतु कुछ औषधियों के प्रयोग से यह रोग 15 दिन ही समाप्त हो जाता है।

कम खाने पर पेट तो भर जाता है परंतु मन नहीं भरता अत: लोग ठूंस ठूंसकर खा ही लेते हैं।

अत्यधिक चिकनाई से पाचन क्रिया विशेषकर यकृत मंद पड़ जाता है जिससे मंदाग्नि अपच मोटापा आदि बीमारियां प्रारंभ हो जाती है।

उचित मात्रा में खाने वालों की अपेक्षा अधिक मात्रा में खाने वालों की मृत्यु दर अधिक होती है और तरह-तरह की बीमारियां भी घेर लेती हैं।

अधिक वजन वाले व्यक्तियों में  पेट में दर्द सूजन जोड़ों में दर्द हड्डियों में टूट-फूट ज्यादा होती है साथ ही तरह तरह की गंभीर बीमारियां भी होती हैं इसके अलावा अत्यधिक भोजन करने से कैंसर संधिवात साइटिका सर्वाइकल सुन्नपन लकवा मिर्गी चर्म रोग होते हैं।

भूख से हमेशा लगभग एक रोटी कम खाना चाहिए पेट में कुछ स्थान पानी और वायु के लिए अवश्य बचाना चाहिए, क्योंकि जब खाना पचता है तब उसका आकार बढ़ जाता है और जब हम ठूस ठूस कर खा लेते हैं तब उसको पचने के लिए जगह नहीं बचती, जिससे एसिडिटी कब्ज गैस बदहजमी खट्टी डकार ऐसी समस्याएं पैदा हो जाती है और लगभग 48 रोग पैदा करती हैं।

इसीलिए हमने आपने आज तक मनुष्यों को भूख से तड़प कर मर ते कम ही देखा होगा ज्यादातर लोग ज्यादा भोजन करके और बीमारियों को आमंत्रण देकर ही मर रहे हैं।

अतः अत्यधिक भोजन सभी असाध्य रोगों की जड़ है।

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