-सनातन की गौरव-गरिमा एवं राष्ट्रोदय का मंत्र के साथ वृंदावन पहुंची सनातन हिन्दू एकता पदयात्रा
-इस अवसर पर गीता मनीषी स्वामी श्री ज्ञानानंद जी, बद्रीनाथ वाले परवाणी बाबा जी महाराज, श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी, सुश्री जया किशोरी जी तथा वृंदावन, ब्रजभूमि की अनेक प्रतिष्ठित विभूतियों ने सहभाग किया
-सनातन हिन्दू एकता पदयात्रा पुनर्जागरण की यात्रा
-सनातन की यात्रा सब की यात्रा, सब को साथ लेकर चलने की यात्रा
-सनातन की यात्रा जिओ और जीने दो की यात्रा, जिन्दा रहो और जिंदा रहने दो की यात्रा : स्वामी चिदानन्द सरस्वती
वृंदावन, ऋषिकेश। भारत की सभ्यता का मूलाधार सनातन धर्म आज भारतीय संस्कृति का प्रकाशस्तंभ है। यह समस्त मानवता के लिए एक मार्गदर्शक शक्ति है। विश्व जिस समय मूल्य संकट, पर्यावरणीय खतरे, मानसिक तनाव और सामाजिक विघटन का सामना कर रहा है, ऐसे समय में सनातन की शिक्षाएँ, कर्तव्य, करुणा, समरसता, अध्यात्म और वसुधैव कुटुम्बकम् एक बार फिर संपूर्ण धरती के लिए आशा का अवलंब हैं।
सनातन हिन्दू एकता यात्रा के माध्यम से भारत के इस आध्यात्मिक पुनर्जागरण के साथ-साथ देश में राष्ट्रचेतना, सांस्कृतिक पहचान और गौरव की भावना अभूतपूर्व रूप से प्रखर हो रही है।
यह वही चिरंतन भावना है जिसने हजारों वर्षों तक हमारी सभ्यता को सुरक्षित रखा, और जिसने हमें आक्रांताओं, चुनौतियों और विघटन के युगों में भी अडिग बनाए रखा।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि सनातन हिन्दू एकता यात्रा किसे से बदला लेने की नहीं बल्कि बदलाव की यात्रा है, यह किसी विरोध की नहीं बल्कि सहयोगी की यात्रा है।
स्वामी जी ने कहा कि भारत के यशस्वी, तपस्वी, ऊर्जावान प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी एवं माननीय गृह मंत्री श्री अमित शाह जी के मार्गदर्शन व नेतृत्व में किसी को भयभीत होने की जरूरत नहीं है बल्कि भाव के साथ खड़े रहने की आवश्यकता है।
स्वामी जी ने कहा कि ये ब्लास्ट भारत को स्वीकार नहीं है। ऐसे में भारत ज्यादा समय तक शान्त नहीं रह सकता। भारत में सदैव था, है, और रहेगा। भारत ने सब को टिका रखा है और टिका रखेगा और भारत भी मजबूत होकर खड़ा रहेगा। ये मोदी जी व योगी जी का युग है जहां सब समान और सब का सम्मान है।
स्वामी जी ने कहा कि ये नौ दिनों की यात्रा कुछ नया घड़ने की यात्रा है, कुछ नया करने की यात्रा है, यह किसी पर थोपने व किसी को रोकने की यात्रा नहीं है बल्कि कुछ नया सोचने की यात्रा है, अब समय आ गया है कि कुछ नये ढंग से सोचे। ये सनातन की यात्रा है जो सदा चलती रही और सदा चलते रहेगी।
यह न तो थकने की यात्रा है और न ही रूकने की यात्रा है। न टूटने की यात्रा है और न ही तोड़ने की यात्रा है बल्कि यह तो जोड़ने की यात्रा है।
आज का भारत वैभव, विज्ञान, अध्यात्म और राष्ट्रीय स्वाभिमान, इन चार स्तंभों पर अपने नवोदय की यात्रा तय कर रहा है।
यह यात्रा केवल आर्थिक और तकनीकी प्रगति तक सीमित नहीं है, बल्कि यह अपने मूल स्रोतों, सनातन संस्कृति, भारतीय ज्ञान परंपरा, और धर्माधारित राष्ट्रचेतना की ओर एक पूर्ण, चिरस्थायी और गौरवपूर्ण रूप से लौटने की है।
सनातन, जाति, संप्रदाय या मत नहीं, बल्कि जीवन का समग्र दर्शन है एक ऐसा मार्ग जो धरती, जल, अग्नि, वायु और आकाश सभी का सम्मान करता है। यह वही परंपरा है जिसने हमें ऋषियों की ज्ञानधारा, शास्त्रों की प्रकाशमान दृष्टि और योग-ध्यान जैसी वैश्विक अमृत-विद्याएँ प्रदान कीं।

आज विश्वभर में योग, आयुर्वेद, ध्यान, गीता-ज्ञान, उपनिषदों का विमर्श और भारत की अध्यात्म-प्रधान जीवनदृष्टि जिस तीव्रता से स्वीकार की जा रही है, वह स्पष्ट संकेत है कि सनातन का उदय विश्वकल्याण का उदय है।
स्वामी जी ने कहा कि भारत, राष्ट्र नहीं, एक आध्यात्मिक चेतना है। भारत हमेशा से केवल एक भूभाग नहीं बल्कि यह एक जीवित राष्ट्रपुरुष, एक सांस्कृतिक चेतना है। एक जमीन का एक टुकडा नहीं बल्कि शान्ति की भूमि है।
यह चेतना जन-जन को जोड़ती है और विविधता को संघर्ष नहीं बल्कि उत्सव मानती है। भारत की यह राष्ट्रभावना “जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी” आज के युवाओं में नए उत्साह के साथ जाग्रत हो रही है। विश्वव्यापी मंचों पर भारत की प्रतिष्ठा, वैश्विक नीतियों में भारत की निर्णायक भूमिका, और सांस्कृतिक मूल्यों की पुनर्प्रतिष्ठा इसी राष्ट्रोदय का संकेत है। सनातन धर्म और भारत का राष्ट्रधर्म अलग-अलग नहीं, एक ही अखंड आध्यात्मिक परंपरा के दो स्वरूप हैं।
सनातन हमें आत्मा, करुणा, सत्य और कर्तव्य की शिक्षा देता है। राष्ट्रधर्म हमें संगठन, स्वाभिमान, अनुशासन और मातृभूमि-सेवा का मार्ग दिखाता है। जब ये दोनों एक साथ प्रवाहित होते हैं, तभी एक राष्ट्र सशक्त भी होता है, सभ्य, प्रगतिशील, पुण्यशील भी होता है।
स्वामी जी ने कहा कि जो अपने मूल से जुड़ा है, वही विश्व में सर्वश्रेष्ठ बन सकता है। एक समय था जब भारतीय संस्कृति को उपेक्षित करने का प्रयास हुआ, अब समय ऐसा है जब विश्व इसे सम्मानपूर्वक अपनाता है। यह परिवर्तन केवल नीतियों का नहीं, बल्कि जन-जन की जाग्रत चेतना का परिणाम है।
भारत पुनर्जागरण के स्वर्णिम युग में प्रवेश कर चुका है और यह सनातन हिन्दू एकता पदयात्रा आने वाली पीढ़ियों के लिए आशा, शक्ति और सद्गुणों का मार्ग बनेगी।
