
-परमार्थ निकेतन से प्रथम श्रावण सोमवार की अनेकानेक शुभकामनायें
-परमार्थ निकेतन, राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन, नमामि गंगे और अर्थ गंगा के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित
-भारत के विभिन्न राज्यों से आये पंडितों ने गंगा जी के प्रति जागरूकता एवं आरती कार्यशाला का लिया प्रशिक्षण
-गंगाजी केवल नदी नहीं, जीवनदायिनी संस्कृति हैं : स्वामी चिदानन्द सरस्वती
ऋषिकेश। श्रावण मास के प्रथम सोमवार के पावन अवसर पर परमार्थ निकेतन में एक विशेष पांच दिवसीय गंगा जी के प्रति जागरूकता एवं आरती कार्यशाला का सफल आयोजन किया गया। यह कार्यशाला राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन, नमामि गंगे तथा अर्थ गंगा अभियान के संयुक्त तत्वावधान में संपन्न हुई, जिसका उद्देश्य गंगाजी की आरती की आध्यात्मिक गरिमा को सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय जागरूकता के साथ जोड़ना है।
इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में देशभर के गंगा तट के पांचों राज्यों से आए पुरोहितों, पंडितों और कर्मकांड करने वाले युवा प्रतिभागियों ने सहभाग किया। उन्हें गंगा आरती की पारंपरिक शैली, वैदिक महत्व, पर्यावरणीय संदेश और सामाजिक प्रभाव के बारे में परमार्थ निकेतन और नमामि गंगे के प्रशिक्षकों ने प्रशिक्षित किया।
प्रशिक्षण के माध्यम से प्रतिभागियों को बताया कि गंगा जी की आरती एक दिव्य धार्मिक अनुष्ठान है साथ ही यह भारत की जल-संस्कृति, पारिस्थितिकी और आध्यात्मिक चेतना का प्रतीक भी है। प्रत्येक संध्या जब परमार्थ गंगा तट दीपमालाओं से आलोकित होता है, तब आराधना के साथ जन-जागरूकता, पर्यावरणीय उत्तरदायित्व और सांस्कृतिक अस्मिता का भी प्रतीक है।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि गंगा जी की आरती आस्था व श्रद्धा के साथ सेवा, संस्कृति और स्थायित्व की त्रिवेणी भी है। गंगा आरती एक स्थानीय आर्थिक तंत्र का सशक्त आधार भी है। इसके माध्यम से स्थानीय लोगों को रोजगार, संस्कृति आधारित पर्यटन और सतत विकास के अवसर प्राप्त होते हैं।
स्वामी जी ने कहा कि गंगा जी केवल एक नदी ही नहीं है, वह भारत की जीवंत आत्मा हैं। वह हमारी संस्कृति, सभ्यता और सनातन परंपरा की आधारशिला हैं। गंगा जी की धारा में केवल जल ही नहीं, बल्कि आस्था, संस्कार और चेतना का प्रवाह है। गंगा आरती इसी चेतना का उत्सव है।
गंगा आरती में जब दीपों की लहरें गंगा की लहरों से मिलती हैं, तो वह संस्कृति और प्रकृति का संगम बन जाती है। यह आरती जल संरक्षण, पर्यावरण रक्षा और सांस्कृतिक चेतना का सशक्त माध्यम है।
इस चेतना को जन-जन तक पहुँचाने में पुरोहितों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। वे न केवल आरती करते हैं, बल्कि समाज को यह संदेश भी देते हैं कि गंगा की रक्षा हमारा धर्म है। जब तक गंगा बहेगी, भारत की आत्मा जीवित रहेगी और जब तक यह आत्मा जीवित है, तब तक हम सबको आस्था और उत्तरदायित्व दोनों का दीपक जलाए रखना है। जब तक गंगा बहेगी, भारत की संस्कृति, चेतना और जीवन प्रवाह अविरल रहेगा।
कार्यशाला में प्रशिक्षण लेने आये पुरोहितों ने परमार्थ निकेतन में गंगाजी के तट पर आयोजित दिव्य व भव्य गंगा आरती में सहभाग कर आरती के प्रशिक्षण के साथ ही जल व पर्यावरण संरक्षण का संकल्प लिया। स्वामी जी ने उन्हें रूद्राक्ष का पौधा देकर हरित पर्व व त्यौहार मनाने का संदेश दिया तथा एक पौधा अपनी माँ और एक धरती माँ के नाम रोपित करने का संकल्प कराया।
इस कार्यशाला में नमामि गंगे के संचार विशेषज्ञ श्री पूरन चन्द कापड़ी जी, परमार्थ निकेतन से गंगा नन्दिनी जी, वन्दना शर्मा जी, राकेश रोशन जी, उमा जी, आचार्य संदीप शास्त्री जी, आचार्य दिलीप क्षेत्री जी, ऋषिकुमार आयुष, परमार्थ गुरूकुल के ऋषिकुमार का उत्कृष्ट योगदान दिया।