हरिद्वार । एस.एम.जे.एन. पी.जी. काॅलेज में आज 09 अगस्त, 1942 को गांधी जी द्वारा शुरू किये गये ‘भारत छोड़ों आन्दोलन’ विषय पर परिचर्चा की गयी।
इस अवसर पर काॅलेज के प्राचार्य डाॅ. सुनील कुमार बत्रा ने बताया कि देश के स्वतंत्रता संग्राम में 08 अगस्त के दिन का विशेष महत्व है। महात्मा गांधी जी ने अंग्रेजों को भारत से निकालने के लिए अंहिंसक आन्दोलनों का नेतृत्व किया और 08 अगस्त, 1942 को उन्होंने ‘भारत छोड़ों आन्दोलन’ की शुरूआत करने का प्रस्ताव पास किया। इस दिन पूरे देश में क्रान्ति की लहर दौड़ गयी थी। गांधी जी ने इस अवसर पर कहा कि मैं आपको एक मंत्र देता हूं जो अपनी हर सांस में बसा ले वह है ‘करो या मरो’। यह आन्दोलन 09 अगस्त, 1942 को शुरू हुआ था। डाॅ. बत्रा ने बताया कि ब्रिटिश शासन के खिलाफ महात्मा गांधी जी का यह तीसरा बड़ा मुख्य आन्दोलन था। यह भारत को तुरन्त आजाद कराने के लिए अंग्रेजी शासन के खिलाफ जन आक्रोश की अभिव्यक्ति थी। इस आन्दोलन में देश के आम लोगों से आह्वान किया था कि अंग्रेजी साम्राज्यवाद से लड़ने के लिए तैयार हो जायें।
इस अवसर पर डाॅ. जे सी आर्य ने बताया कि ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ देश का बड़ा आन्दोलन था जिसकी वजह से अंग्रेज भारत छोड़ने पर मजबूर हो गये। यह आन्दोलन ऐसे समय आरम्भ किया गया था जब दुनिया काफी बदलावों के दौर से गुजर रही थी।
इस अवसर पर डाॅ. संजय कुमार माहेश्वरी ने बताया कि साम्राज्यवाद के खिलाफ आन्दोलन तेज होते जा रहे थे, एक ओर भारत गांधी जी के नेतृत्व कि आशा कर रहा था और दूसरी ओर नेता जी सुभाष चन्द्र बोस भारत को आजाद करने के लिए फौज तैयार कर रहे थे। उन्होंने बताया कि ऐसा कहना गलत नहीं होगा कि जन आन्दोलन से भारत की आजादी की मजबूत जमीन तैयार हो चुकी थी, अब स्वतंत्रता कुछ ही समय की बात थी। गांव से शहर तक ब्रिटिश सरकार को पंगु बना दिया गया था।
इस अवसर पर डाॅ. नलिनी जैन ने बताया कि ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ जिसे ‘अगस्त क्रान्ति’ भी कहा जाता है, में अनेकों महिलाओं जैसे सरोजनी नायडू, कल्पना दत्ता, राजकुमारी, अमृत कौर आदि ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। इस अभियान में गांधी जी ने एक प्रस्ताव पास किया जिसमें अंग्रेजों से तुरन्त भारत छोड़ने की मांग की गयी।
इस अवसर पर डाॅ. सुषमा नयाल ने बताया कि ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ ने इस सच्चाई को एक बार फिर रेखांकित किया कि भारत की आम जनता किसी भी कुर्बानी से पीछे नहीं हटती है। अंग्रेज शासकों ने दमन करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इस अवसर पर मोहन चन्द्र पाण्डेय, वेद प्रकाश चौहान आदि समस्त कर्मचारी उपस्थित रहें।