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निरंजनी में गुरुकुल का निर्माण कर संतो को दी जाएगी धर्म-संस्कृति की शिक्षा

हरिद्वार। पंचायती अखाड़ा श्री निरंजनी के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी कैलाशानंद गिरी द्वारा दिए गए संन्यास प्रक्रिया पर बयान पर आज चुप्पी तोड़ते हुए उन्होंने कहा कि
हमारे द्वारा इस प्रक्रिया के लिए एक बायलॉज तैयार किया जा रहा है जैसे ही वह बायलॉज तैयार हो जाएगा उसके बाद उसे अखाड़े के समक्ष रखा जाएगा के और हम मिलकर उसने अगर सुधार करने की और आवश्यकता होगी तो सुधार करेंगे फिर उसे विधि विधान से लागू करेंगे ।

वही साधु संतों की संन्यास प्रक्रिया पर बोलते हुए स्वामी कैलाशानंद गिरी ने कहा कि जिस तरह से देश का भविष्य युवा होते हैं उसी तरह अखाड़े का भविष्य उनसे जुड़े साधु संत और महामंडलेश्वर होते हैं इसलिए उन्हें जितना बेहतर बनाया जा सके उतना बहतर बनाने का हमारा द्वारा प्रयास किया जा रहा है इसी कड़ी में मेरे मन में भाव आया कि क्यों ना अब हमारे अखाड़े में जितने भी साधु संत जुड़ना चाहते हैं और महामंडलेश्वर बनना चाहते हैं उन्हें कम से कम रामायण, रामचरितमानस और गीता का पाठ तो आना ही चाइये यदि वह धर्म को जानेंगे और धर्म का उन्होंने अध्ययन किया होगा तभी वह धर्म की बात को दूसरों तक पहुंचा पाएंगे ।

गुरुकुल का निर्माण कर आएगा निरंजनी अखाड़ा

वही निरंजनी अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर कैलाशानंद गिरी कहा कि वह अखाड़े से वार्ता कर एक गुरुकुल भी खुलवा आएंगे जिसमें हमारे अखाड़े से जुड़े महामंडलेश्वर और सन्यासिय शिक्षा ग्रहण करेंगे उनमे हम नियम बनाये की जो भी साधु संत विद्या ग्रहण करना चाहते हैं वह चतुर्थ मास के महीने में अवश्य वह वहां पर विद्या ग्रहण करने जाए इसी के साथ ही अन्य लोग भी वहां पर शिक्षा ग्रहण कर सकगे ।

वही जब निरंजनी अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर कैलाश आनंद गिरि से यह विचार आखिर क्यों मन मे आया ओर इसकी क्यों इतनी जरूरत है सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा कि
कई जगह है कौन साधु संतों के प्रति लोगों के भाव अलग अलग हुआ करते थे कई साधु संतों और महामंडलेश्वर तो ऐसे भी हैं जिन्हें धर्म का बहुत ही कम ज्ञान है उनकी बातें कई लोग हमारे तक पहुंचाया करते थे जिससे हमें काफी ठेस पहुंचता था इसीलिए हमने यह निर्णय लिया कि हम अपने अखाड़े से शुरुआत करेंगे और निरंजनी अखाड़ा शुरू से ही विद्वानों का अखाड़ा रहा है और राजा की पूजा केवल और केवल अपने क्षेत्र में ही होती है बल्कि ज्ञानी को हर जगह पूजा जाता है इसलिए हमारे द्वारा यह निर्णय लिया गया और मुझे लगता है कि निरंजनी अखाड़े के सभी साधु संत मेरे इस फैसले के पक्ष में ही होंगे।

वही दूसरे अखाड़ों के इस फैसले के मानने ना मानने पर बोलते हुए स्वामी कैलाशानंद की भी ने कहा कि यह फैसला हमने अपने अखाड़े के लिए लिया है और मुझे उम्मीद है कि शायद आज नहीं कल सभी अखाड़े भी इस फैसले को अपने-अपने अखाड़ों में सम्मिलित करेंगे क्योंकि आने वाला समय में इस तरह के नियम और फैसले लेने बहुत जरूरी है।

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