हिंदुओं का संगठित होना बहुत जरूरी है:: वसीम रिजवी
हरिद्वार। शिया वक्फ बोर्ड उत्तर प्रदेश के पूर्व चेयरमैन वसीम रिजवी उर्फ जितेंद्र नारायण सिंह त्यागी के इस्लाम छोड़कर हिंदू धर्म अपनाने के बाद आज गंगा दशहरे के पावन अवसर पर मां गंगा में स्नान किया इस दौरान उनके साथ शांभवी धाम पीठाधीश्वर स्वामी आनंद स्वरूप भी मौजूद रहे।
इस दौरान जितेंद्र त्यागी उर्फ वसीम रिजवी ने कहा कि आज गंगा दशहरे के दिन स्वामी आनंद स्वरूप जी के साथ मां गंगा में स्नान कर मां गंगा की पूजा अर्चना की है आज मां गंगा में स्नान मैंने पहली बार किया है अभी मेरा सिर्फ और सिर्फ एक ही मकसद है कि किस तरह सनातन धर्म की रक्षा हो सके और किस तरह सनातन धर्म के लिए सेवा कर सकूं। आज के समय के अनुसार सबसे बड़ी जरूरत हिंदुओं को संगठित करना है इसी के साथ ही हिंदुओं के लिए अच्छे विचार और सुझाव रखे जाने चाहिए अपने सन्यास लेने पर बोलते हुए जितेंद्र नयन त्यागी ने कहा कि मेरी अनुसार से सबसे पहले व्यक्ति को मनुष्य बनना बहुत जरूरी है क्योंकि एक मनुष्य ही दूसरे मनुष्य की पीड़ा को जान सकता है और उसके बाद यह समझना कि वह किस मकसद के साथ इस दुनिया में आया है और उस मकसद पूरा कर सकता है।
स्वामी आनंद स्वरूप ने इस दौरान कहा कि हमारा हिंदू धर्म बहुत ही विशाल है और इसमें बहुत ही कुछ सीखने को है मां गंगा के अवतरण दिवस पर हमने और जितेंद्र त्यागी ने मिलकर मां गंगा में स्नान किया है और ऐसा कहा जा सकता है कि आज से जितेंद्र नारायण जी त्यागी जी की हमारे द्वारा शुरुआत की गई है जितेंद्र नारायण त्यागी ने सन्यास के लिए अपनी इच्छा जताई थी तो उसकी तमाम प्रक्रियाएं हैं त्यागी जितना हमारे धर्म के बारे में जितना अत्यधिक जान जाएंगे उतना ही अच्छा होगा। मेरे द्वारा त्यागी जी को कहा गया है कि वह जितना हो सके पहले सनातन धर्म के बारे में सीखें स्वामी आनंद स्वरूप ने जितेंद्र नयन त्यागी के संन्यास के बारे में बताते हुए कहा कि अभी हमारा किस अखाड़े में जायेगे कौन इनको सन्यास दिलाएंगा यह सब चर्चाएं चल रही हैं ।
आपको बता दें कि उनके सन्यास लेने की तैयारियों केे अमली जामा पहना जाया जा रहा है। धर्मनगरी के वेदनिकेतन में आयोजित धर्मसंसद में अमर्यादित भाषणों के मामले में जेल भेजे गए शिया वक्फ बोर्ड यूपी के पूर्व चेयरमैन वसीम रिजवी उर्फ जितेंद्र नारायण सिंह त्यागी के सुप्रीम कोर्ट से अंतरित जमानत पर जेल से बाहर आने के बाद उन्होंने शांभवी पीठाधीश्वर व शंकराचार्य परिषद के अध्यक्ष स्वामी आनंद स्वरूप से सन्यास लेने की इच्छा जताई थी। जिसके बाद शांभवी पीठाधीश्वर के साथ वह संतों से मुलाकात करने के लिए भी पहुंचे थे।