-विश्व योगगुरू स्वामी रामदेव जी महाराज, महामंडलेश्वर स्वामी कैलाशानन्द जी महाराज, साध्वी ऋतंभरा जी, दीदी माँ, साध्वी चित्रलेखा जी, साध्वी देवप्रिया जी सहित अनेक पूज्य संत का हनुमत कथा में पावन सान्निध्य
-पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी और पूज्य साध्वी भगवती सरस्वती जी का पावन सान्निध्य एवं आशीर्वाद
-पंजाब केसरी, लाला लाजपत राय जी की जयंती पर कोटिशः नमन
-हनुमत कथा के दिव्य मंच से स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने दिया संदेेश ‘‘अंगदान -महादान’’
-पूज्य संत स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी, पूज्य बागेश्वर धाम सरकार, धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री जी और साध्वी भगवती सरस्वती जी ने संगम में किया स्नान
प्रयागराज। महाकुम्भ के पावन अवसर पर परमार्थ निकेतन शिविर, परमार्थ त्रिवेणी पुष्प प्रयागराज में आचार्य धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री जी, बागेश्वर धाम सरकार जी की अमृतवाणी में श्री हनुमत कथा की अमृतधारा प्रवाहित हो रही हैं।
महाकुम्भ के दिव्य अवसर पर, प्रयागराज के संगम तट पर स्थित परमार्थ निकेतन शिविर, परमार्थ त्रिवेणी पुष्प में आचार्य धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री जी के श्रीमुख से श्री हनुमत कथा का आज दूसरा दिन है। इस दिव्य आयोजन में पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी और पूज्य साध्वी भगवती सरस्वती जी का पावन सान्निध्य एवं आशीर्वाद प्राप्त हो रहा है।
इस अद्वितीय कथा के माध्यम से आचार्य धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री जी ने श्री हनुमान जी के गुणगान, राष्ट्र भक्ति, प्रभु प्रेम, समर्पण और उनकी लीलाओं का दिव्य वर्णन किया जा रहा है, जो श्रद्धालुओं के लिए एक अमृत वाणी की तरह है। आज की हनुमत कथा की दिव्य आरती कुम्भ मेला को स्वच्छ और कचरा मुक्त रखने वाले पर्यावरण मित्रों को समर्पित की गयी।
संगम के पवित्र तट पर आयोजित इस हनुमत कथा में साधक एवं भक्तगण, अपने जीवन में भगवान श्रीराम के परम भक्त श्री हनुमान के अद्वितीय योगदान और आशीर्वाद को प्राप्त करने के लिए एकत्रित हुए हैं। हनुमान जी का चरित्र, शक्ति, भक्ति और समर्पण का अद्भुत संगम है।
विश्व योगगुरू स्वामी रामदेव जी महाराज ने ‘‘अमृत है हरि नाम जगत में’’ भजन करते हुये संदेश दिया कि प्रयागराज में उत्सव है परन्तु परमार्थ निकेतन में महोत्सव है। उन्होंने संदेश दिया कि राशन कम और आसन ज्यादा, भोजन कम और भजन ज्यादा। सनातन संस्कृति का अद्भुत आकर्षण है। सनातन संस्कृति भारत का गौरव है। आसन, प्राणायाम व योग करें तो हमारे शरीर से भी स्वास्थ्य रूपी अमृत निकलेगा। जब गुरू और प्रभु का अनुग्रह हमारे पास हो तो कोई भी ग्रह हमें परेशान नहीं कर सकता। कुम्भ, ब्रह्मण्ड की दिव्य शक्तियों का दिव्य संयोग है यह संयोग 144 वर्षों बाद आया है इस दिव्य धरती से नशा छोड़ने का संकल्प लेकर जायें। उन्होंने संकल्प कराया कि हम सभी सनातनी हिन्दू है इसलिये हमारे अन्दर हिन्दुत्व होना चाहिये। सनातन धर्म की जय-जय कार करने वालों के साथ सनातन को जीने वाले बनंे।
इस अवसर पर पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने अपने आशीर्वचन में कहा कि गंदगी व बंदगी साथ-साथ नहीं जा सकती। महाकुम्भ के अवसर पर पूरी दुनिया से श्रद्धालु संगम में स्नान कर पुण्य कमाने आते हैं परन्तु हमारे स्वच्छता कर्मी भाई-बहन संगम को स्नान कराते हैं। बिना किसी पुरस्कार की उम्मीद के सिर्फ ओर सिर्फ समाज और पर्यावरण की भलाई के लिये करते हैं। वे हमारे समाज के असली नायक हैं, जो अपने समर्पण और मेहनत से इस पवित्र स्थान को स्वच्छ बनाये रखते हैं।
उन्होंने कहा कि शाही स्नान तो हो परन्तु संगम स्नान भी हो। जब तक हम अपने वातावरण को स्वच्छ और सुरक्षित नहीं बनांएगे, तब तक हमारे भीतर की शुद्धता भी अधूरी रहेगी। महाकुम्भ के दौरान हमारे पूज्य संत आन्तरिक पवित्रता को बनाये रखने हेतु कार्य करते हैं और स्वच्छता कर्मी भाई-बहन धरती की स्वच्छता, शुद्धता व पवित्रता के लिये कार्य करते हैं।
पूज्य साध्वी भगवती सरस्वती जी ने अपने संबोधन में कहा कि महाकुम्भ, आत्मिक जागृति और परिशुद्धता का महापर्व है। यह पर्व केवल स्नान और पूजा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक जीवन को सशक्त और जागरूक बनाने का दिव्य अवसर भी है। हम जितना अपनी आत्मा की सफाई करते हैं, उतना ही हमारा जीवन धन्य और उज्जवल बनता है। महाकुम्भ न केवल बाहरी शुद्धता, बल्कि आंतरिक शुद्धता, आत्मिक जागृति और परिशुद्धता का महापर्व है, जो हमें जीवन की सच्चाई और उद्देश्य की ओर बढ़ने का मार्गदर्शन प्रदान करता है। भारतीय संस्कृति का रंग इतना गहरा है कि वह कभी नहीं सुखेगा।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती आज हनुमत कथा के दिव्य मंच से अंगदान महादान के प्रति जागरूक करते हुये कहा कि जीते-जीते रक्त दान और जाते-जाते अंगदान। कथा में उपस्थिति हजारों श्रद्धालुओं को संकल्प कराया।
एक साधक की गाथा-बागेश्वर धाम सरकार कृति का विमोचन स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी और साध्वी भगवती सरस्वती जी के पावन कर कमलों से किया गया। जो आचार्य धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री जी के जीवन के अनदेखे और अनछुए पहलुओं को समर्पित है। इस पुस्तक में आचार्य जी के संघर्ष, तप, और दिव्य शक्ति के विषय में विस्तार से चर्चा की गई है।
इस अवसर पर स्वामी लक्ष्मण गुरूजी, श्री प्रमोद जोशी जी, श्री मनोज जी और अनेक विशिष्ट विभूतियों का पावन सान्निध्य प्राप्त हुआ।