Events Haridwar News Politics Uttarakhand

शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने माना ज्योतिष पीठ गिरी, सागर और पर्वत नामा का, पढ़े पूरी खबर

हरिद्वार। शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के निधन के बाद शंकराचार्य पद पर आसीन हुए स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद मंगलवार दोपहर पहली बार कनखल स्थित शंकराचार्य मठ पहुंचे जहां उनका कई अखाड़ों और साधु-संतों ने स्वागत किया अविमुक्तेश्वरानंद का कहना है कि इतने बड़े पद पर आसीन होने के बाद दायित्व बोध भी बढ़ जाता है। आपको बता दें कि शारदा पीठाधीश्वर स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के निधन के बाद शंकराचार्य पद की कमान स्वरूपानंद सरस्वती के शिष्य रहे स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद को सौंपी गई थी हालांकि बहुत से संतो ने इसका विरोध भी किया था लेकिन विरोध के बावजूद अविमुक्तेश्वरानंद शंकराचार्य की गद्दी पर आसीन हो गए थे पद संभालने के बाद पहली बार वे कनखल स्थित शंकराचार्य मठ पहुंचे जहां उनका भव्य स्वागत किया गया कई अखाड़ों से जुड़े संतों ने अविमुक्तेश्वरानंद का माल्यार्पण कर स्वागत किया और उन में अपनी पूर्ण आस्था व्यक्त की।

शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने पत्रकारों से वार्ता करते हुए कहा कि शंकराचार्य पद पर आसीन होने से दायित्व बोध बढ़ जाता है तो स्वाभाविक है कि जब हम चीजों को देखते हैं तो शंकराचार्य के दायित्व बोध से ही देखते हैं विरोध के प्रश्न पर बोलते हुए शंकराचार्य ने कहा कि कुछ लोग विरोध कर रहे है विशेष तौर पर एक व्यक्ति उनका विरोध कर रहा है जिसको सभी अखाड़ो का समर्थन भी हासिल नही है अखाड़ो के बहूत से संत उनके लगातार संपर्क में है। हालांकि उन्होंने कहा कि उनका क्या विरोध है यह उनसे मिलकर दूर कर लिया जाएगा। वही काशी विध्दत परिषद पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि विध्दत परिषद का गठन मात्र 100 साल पुरानी है जबकि शंकराचार्य संस्कृति ढाई हजार साल पुरानी परंपरा है। साथ ही अखाड़ा परिषद अध्यक्ष द्वारा गिरी नामा के शंकराचार्य बनाये जाने पर उन्होंने कहा कि वे मानते है कि ज्योतिष पीठ पर गिरी,सागर और पर्वत नामा ही शंकराचार्य बनते है लेकिन पिछले कई सालों से यह परंपरा जारी नही रही, इस बार उनके गुरु द्वारा उनको जिम्मेदारी दी गई जिस पर उनके द्वारा अन्य शंकराचार्यों से गिरी नामा ग्रहण करने की बात कही तो उनके द्वारा उन्हें गुरु द्वारा नाम ही आगे चलाने के लिए आदेशित किया गया। जिसका वे पालन कर रहे है। जो परंपराएं मठ की अब तक चलती रही है हम भी उन्हीं परंपराओं को आगे बढ़ाएंगे 235 सालों में कोई भी ज्योतिष्पीठ का शंकराचार्य भगवान बद्रीनाथ जी के कपाट खुलने ओर बंद होने पर पालकी के साथ ज्योतिर मठ नहीं आया तो हम सोचते हैं कि अब हमें यह काम करना चाहिए और उन परंपराओं को जीवित रखना चाहिए इसीलिए बद्रीनाथ जी के कपाट बंद होते समय जो परंपराओं का निर्वहन मठ को करना चाहिए वह हम करने जा रहे हैं 235 साल पहले जो परंपरा बद्रीनाथ जी में मठ द्वारा अपनाई जाती थी उन्हीं का पालन करने अब हम बद्रीनाथ जा रहे हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *