-परमार्थ त्रिवेणी पुष्प में किया दर्शन एवं भ्रमण
-भारतीय संस्कृति का जीवंत स्वरूप हैं परमार्थ त्रिवेणी पुष्प
-पूज्य संतों ने इलायची की माला से अभिनन्दन किया
प्रयागराज। पूज्य श्री श्री रविशंकर जी परमार्थ निकेतन शिविर, महाकुंभ प्रयागराज पधारे। पूज्य श्री श्री जी, पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी और पूज्य साध्वी भगवती सरस्वती जी की दिव्य भेंटवार्ता हुई। इस दिव्य भेंटवार्ता में भारतीय संस्कृति के जीवंत स्वरूप, सनातन संस्कृति, पर्यावरण संरक्षण, त्रिवेणी संगम और परमार्थ त्रिवेणी पुष्प के महत्व पर विशद् चर्चा हुई।
श्री श्री रविशंकर जी के परमार्थ त्रिवेणी पुष्प में पधारने पर पूज्य साध्वी भगवती सरस्वती जी ने उन्हें पूरे परिसर का भ्रमण कराया तथा पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने परमार्थ त्रिवेणी पुष्प में निर्मित दिव्य कृतियों यथा आदिगुरू शंकराचार्य जी द्वारा स्थापित भारत के चारों धामों की प्रतिकृतियों का दिव्य दर्शन, उत्तराखंड के धामों की दिव्यता व भव्यता का दर्शन, अयोध्या धाम के श्रीराम मन्दिर की प्रतिकृति का दिव्य स्वरूप श्रीराम मन्दिर की प्रतिकृति, भारत माता मन्दिर, श्री रामेश्वर मन्दिर प्रतिकृति, श्री जगन्नाथ धाम मन्दिर, जगद्गुरू शंकराचार्य जी से लेकर सभी महान आचार्यों की परम्परा का दिव्य दर्शन, पूज्य स्वामी विवेकानन्द जी की दिव्य व भव्य प्रतिमा, संत मीरा बाई की दिव्य प्रतिमा, देश के सैनिकों के सम्मान में अमर जवान ज्योति स्मारक व कई पौराणिक मंदिरों के यथावत स्वरूप और अन्य धार्मिक प्रतिकृतियों का निर्माण भारत दर्शन के रूप में किया गया हैं। साथ ही यहां पर योग, आयुर्वेद, पंचकर्म, आदि प्राचीन विधाओं का संरक्षण भी किया जा रहा है।
पूज्य श्री श्री रविशंकर जी ने भारतीय संस्कृति के अद्वितीय तत्वों के विषय में चर्चा की। उन्होंने परमार्थ त्रिवेणी पुष्प का दर्शन करते हुये कहा कि यह भारतीय संस्कृति का दिव्य प्रतीक है, जो धर्म, आस्था और मानवता के त्रिवेणी संगम के रूप में यहां आने वाले श्रद्धालुओं की जीवनधारा को सही दिशा में मार्गदर्शित करने का श्रेष्ठ कार्य करेगी। यह वास्तव में भारतीय संस्कृति का अद्भुत केेन्द्र बनकर उभरा है। पूज्य स्वामी जी ने बहुत सुन्दर रचना की हैं इस पूरे परिसर की।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि भारत एक ऐसी भूमि है, जहाँ की संस्कृति, परंपराएँ और आध्यात्मिकता न केवल हमारे दैनिक जीवन का अभिन्न अंग हैं, बल्कि वे हमारे अस्तित्व के हर पहलू को गहराई से प्रभावित करती हैं। भारतीय संस्कृति की यह विराटता न केवल भौतिकता में, बल्कि हमारे विचारों, आस्थाओं और भावनाओं में भी सन्निहित है। इसी की एक दिव्य अभिव्यक्ति है परमार्थ त्रिवेणी पुष्प, जो भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता का जीवंत स्वरूप है।
स्वामी जी ने बताया कि परमार्थ त्रिवेणी पुष्प भारतीय संस्कृति के तीन प्रमुख तत्वों धर्म, आस्था और मानवता का प्रतीक हैं। यहां से पूरे विश्व को आध्यात्मिक जीवनदायिनी शक्ति प्रदान करने हेतु कार्य किया जायेगा। भारतीय दर्शन में त्रिवेणी का बड़ा महत्व है। परमार्थ त्रिवेणी पुष्प भी जीवन के इन तीन महत्वपूर्ण पहलुओं का प्रतीक है, जो श्रद्धालुओं को शुद्धि और आत्मसाक्षात्कार का मार्ग दिखायेगा।
साध्वी भगवती सरस्वती जी ने कहा कि महाकुंभ एक ऐसा दिव्य और अद्भुत अवसर है, जब लाखों श्रद्धालु एक साथ आकर धार्मिक और आध्यात्मिक उन्नति के लिए प्रयासरत होते हैं। यह एक ऐसा पर्व है, जो न केवल भौतिक, बल्कि मानसिक और आत्मिक शुद्धता का भी प्रतीक है। महाकुंभ के इस पवित्र आयोजन में, हमें अपनी आंतरिक यात्रा पर पुनः विचार करने का समय मिलता है। यह समय हमें अपने भीतर की शांति और साधना की शक्ति को पहचानने का है, ताकि हम अपनी आत्मिक उन्नति की ओर अग्रसर हो सकें।
संगम हमें यह एहसास कराता है कि जैसे जल की शुद्धता हमारे शरीर के लिए आवश्यक है, वैसे ही मानसिक और आत्मिक शुद्धता भी हमारे जीवन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
महाकुंभ के इस पवित्र आयोजन में हम अपने भीतर के तनाव, उलझन और नकारात्मकताओं को छोड़कर आत्मिक शांति की ओर बढ़ें। यह समय हमें हमारे उद्देश्य को समझने का है, अपने जीवन को सही दिशा में मोड़ने का है। यह हमें याद दिलाता है कि हम केवल भौतिक सुखों के पीछे न दौड़ें, बल्कि आत्मिक संतुष्टि और शांति को प्राथमिकता दें। जब हमारी आत्मा शुद्ध होती है, तो हमारा व्यक्तित्व भी शुद्ध होता है, और यही शुद्धता हमारे समाज और दुनिया के प्रति हमारे कर्तव्यों को निभाने की क्षमता को भी बढ़ाती है।
इस अवसर पर आचार्य दीपक शर्मा, गंगा नन्दिनी त्रिपाठी, अरूण सारस्वत, निवृति, आई सी अग्रवाल, परमार्थ गुरूकुल के ऋषिकुमारों उपस्थिति थे। सभी ने श्री श्री जी का अभिनन्दन किया।