वरिष्ठ पत्रकार सुनील दत्त पांडेय
स्वामी विवेकानंद की 163 वी जन्म-जयंती के अवसर पर विशेष,गपुरुष स्वामी विवेकानंद के ऐतिहासिक शिकागो संबोधन ने पूरी दुनिया का नजरिया भारत के प्रति एकदम बदल कर रख दिया।स्वामी जी के कालखंड में भारत पूरी दुनिया में टोने-टोटके,काला जादू और सपेरो का देश माना जाता था। जब स्वामी जी ने 11 सितंबर 1893 को शिकागो के धर्म सम्मेलन में उद्बोधन किया तो पूरे विश्व की आंखें इस युवा संत की ओजस्वी वाणी और विचारों से खुली की खुली रह गई और पूरा सभागार बहुत देर तक इस युवा संत के सम्मान में तालियो की करतल ध्वनि से गूंजता रहा। और स्वामी जी विश्व पटल पर छा गए। स्वामी विवेकानंद ने पूरी दुनिया के सामने समाज सेवा की एक नई परिभाषा प्रस्तुत की,'नर सेवा नारायण सेवा' और जिसे उन्होंने जन-जन तक पहुंचाया। स्वामी विवेकानंद भारतीय संस्कृति के संवाहक थे। उन्होंने पूरे विश्व में भारतीय संस्कृति को एक नई पहचान दिलाई। स्वामी जी ने शिकागो में हुए धर्म सम्मेलन में पूरी दुनिया में भारतीय दर्शन की अमिट छाप छोड़ी। उन्होंने हमेशा भारतीय जनमानस में व्याप्त सामाजिक कुरीतियों का जोरदार विरोध किया और समाज को नैतिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक सोच के साथ-साथ आधुनिक, वैज्ञानिक सोच की ओर भी ले जाने का प्रयास किया।स्वामी जी महिलाओं को शिक्षित करने,उनकी सुरक्षा व सम्मान करने के प्रबल समर्थक थे। समाज में अंतिम पंक्ति में बैठे हुए अंतिम व्यक्ति के कल्याण के लिए उन्होंने हमेशा प्रयास किए। दरिद्र नारायण सेवा स्वामी जी का एक विचार था, इसलिए उन्होंने नर सेवा नारायण सेवा का उद्बोधन पूरी दुनिया को दिया और समझाया की नर में ही नारायण का वास है। इसलिए नर की सेवा ही नारायण की सबसे बड़ी पूजा है। विवेकानंद ने कहा था, 'नारायण यानी ईश्वर तक पहुँचने के लिए हमें दरिद्र नारायण की सेवा करनी चाहिए, जो देश के भूखे लाखों लोग हैं। उनके लिए महसूस करें, उनके लिए प्रार्थना करें। पीड़ित और दुखी भाई-बहनो की राहत और उत्थान के लिए प्रयास करें।' दरअसल स्वामी विवेकानंद जी ने 'वेदांत के सिद्धांतों' को व्यावहारिक रूप में जनमानस में उतारने का कार्य 'दरिद्र नारायण सेवा' के रूप में किया है,जो बहुत ही अतुलनीय और गरिमामय है। स्वामी विवेकानंद का उत्तराखंड खासकर हरिद्वार,ऋषिकेश, देहरादून,अल्मोड़ा और चंपावत से विशेष नाता रहा है। देवभूमि उत्तराखंड ने स्वामी जी को काफी हद तक प्रभावित किया है,जब स्वामी विवेकानंद शिकागो के धर्म सम्मेलन में भाग लेने के लिए अमेरिका गए तो उससे पहले उन्होंने देवभूमि उत्तराखंड का भ्रमण किया और उन्होंने अल्मोड़ा के काकरी घाट में साधना की और उन्हें वहां से जो ज्ञान प्राप्त हुआ, उसका प्रभाव उनके शिकागो धर्म सम्मेलन के ओजस्वी उद्बोधन में साफ दिखाई दिया।स्वामी विवेकानंद 1890 में हरिद्वार और ऋषिकेश की यात्रा पर आए।उन्होंने कुछ दिन ऋषिकेश में कैलाश आश्रम में रहकर गंगा के पावन तट पर साधना भी की और स्वामी जी देहरादून भी गए। स्वामी जी ने हरिद्वार और ऋषिकेश में देखा कि कुछ संत लोग आर्थिक अभाव के कारण अपना इलाज नहीं करा पा रहे हैं और बीमारियों से जूझ रहे हैं। स्वामी जी ने कोलकाता जाकर अपने दो शिष्यों स्वामी निश्चयानन्द और स्वामी कल्याणानंद को हरिद्वार जाने को कहा और उन्हें यहां पर एक धर्मार्थ चिकित्सालय स्थापित करने की बात कही, जिसमें साधुओं का निःशुल्क इलाज किया जा सके और इन दो संतों के अथक प्रयासो से श्री रामकृष्ण मिशन सेवाश्रम की स्थापना कनखल में 1901 में हुई और तब से यह अस्पताल साधु-संतों और गरीबों का निःशुल्क इलाज निरंतर करता चला आ रहा है। स्वामी विवेकानंद जी के शिष्य स्वामी कल्याणानंद 1901 में कनखल हरिद्वार आए और जबकि उनके दूसरे शिष्य स्वामी निश्चयानन्द 1903 में हरिद्वार आए। श्री रामकृष्ण मिशन सेवाश्रम कनखल के सचिव स्वामी दयामूर्त्यानन्द महाराज बताते हैं कि स्वामी विवेकानंद के जन्म जयंती पौष कृष्ण सप्तमी तिथि के दिन हर वर्ष पूरे विश्व में श्री रामकृष्ण परमहंस के आश्रमों और चिकित्सालयो में रोगी नारायण सेवा दिवस के रूप में मनाया जाता है और इस दिन मिशन के चिकित्सालयो में भर्ती मरीजों की पूजा की जाती है। उन्हें तिलक लगाया जाता है,फूलों की माला पहनाई जाती है, साथ ही प्रसाद के रूप में फल वितरित किए जाते हैं। इस वर्ष पंचांग तिथि के अनुसार स्वामी विवेकानंद जी की जन्म जयंती 21 जनवरी, मंगलवार माघ मास कृष्ण सप्तमी को मनाई जा रही है। इस तरह स्वामी जी के अनुयाई उनके विचारों को धरातल पर उतारने का कार्य पूरी जिम्मेदारी के साथ कुशलतापूर्वक निभा रहे हैं।
साभार: जनसत्ता