-निषादराजों को अर्पित किया 3000 लाइफ जैकेट
-पूज्य महामंडलेश्वर स्वामी विशोकानन्द जी महाराज, महानिर्वाणी अखाड़ा परिषद् के अध्यक्ष महंत रविन्द्र पुरी जी महाराज, स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी, बागेश्वर धाम सरकार, आचार्य श्री धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री जी, स्वामी रामचन्द्र दास जी, म म स्वामी संतोषदास जी (सतुआ बाबा), नाथ सम्प्रदाय के महंत बालकनाथ जी, आचार्य राम जी महाराज, स्वामी फलाहरी बाबा जी, स्वामी सच्चा बाबा जी, स्वामी अभयदास जी महाराज, साध्वी भगवती सरस्वती जी, साध्वी चित्रलेखा जी, डा गिरिश वर्मा जी और अनेक पूज्य संतों का पावन सान्निध्य
प्रयागराज। परमार्थ निकेतन शिविर, परमार्थ त्रिवेणी पुष्प में आज पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज और बागेश्वर धाम सरकार, आचार्य धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री जी के मार्गदर्शन और नेतृत्व में महाकुम्भ महासंत महासम्मेलन का आयोजन किया गया। महाकुम्भ के पावन पर्व पर इस देश की पावन परम्परा का हम सब ने दर्शन किया है। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि सनातन है तो भारत है, भारत है सनातन है, सनातन है तो संगम है, सनातन है तो संविधान है। मैं इस देश के भाव को नमन करता हूँ, इस माटी को नमन करता हूँ। महाकुम्भ की धरती पर सभी साथ साथ रहकर इस देश के संगम को बचाये हुये है।
सतुआ बाबा जी ने कहा कि पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने एकता व समरसता का अद्भुत कलश बनाया है। मौनी अमावस्या के अवसर पर हुई दुःखद घटना से पूरा संत समाज व्यथित हैं। हम उन सभी उन परिवारों के साथ हैं जिन्होंने अपनों को खोया है। संसार आने व जाने का बहुत बड़़ा महासागर है। सनातन की व्यापकता अद्भुत है। प्रयाग पूरे विश्व को संगम में मंजन कराता आ रहा है।
बागेश्वर धाम सरकार, आचार्य श्री धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री जी ने कहा कि महाकुम्भ में जो घटना घटी वह अत्यंत दुःखद है। जिन्होंने भी प्रयाग में अपने शरीर को छोड़ा है उनके लिये यह महासंत महासम्मेलन श्रद्धाजंलि समारोह समर्पित है। सनातन धर्म अद्भुत और अनूठा है। पूज्य संतों ने पहले देश को स्नान कराया फिर साधु भेष ने स्नान किया। घटना दुःखद है परन्तु शव व शिव पर राजनीति नहीं की जाती। सरकार ने अपनी कोशिश की परन्तु श्रद्धा का उबाल है। यह घटना हृदय विदारक है परन्तु गंगा जी के तट पर शरीर त्याग करना मोक्ष प्राप्त करना है। उन्होंने कहा कि इस घटना की सुक्ष्म रूप से जांच की जाये तो अराजक तत्वों की जानकारी मिलेगी। प्रशासन ने जितनी जल्दी घायलों को अस्पताल पहंुचाया वह प्रशंसनीय हैं। सनातन बहुत विराट है। हमारी मातायें बहने भोग्या नहीं पूज्या है।
आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी विशोकानन्द जी महाराज ने कहा कि मौनी अमावस्या के दिन जो घटना घटी उसके बाद पूज्य संतों व अखाड़ों ने स्नान तो किया परन्तु उत्साह नहीं था क्योंकि हमने अपने प्रियजनों को खो दिया और कुछ घायल हो गये। प्रभु हमारे उन प्रियजनों को जिन्होंने शरीर त्याग किया उन्हें मोक्ष प्रदान करें और जो घायल हुये हैं वे शीघ्र स्वास्थ्य लाभ प्राप्त कर घर लौंटे। सनातन सभी को माथे पर रखता है। हम विश्वगुरू नहीं हम तो ब्रह्माण्ड गुरू हैं। वो भाग्यशाली हैं जिन्होंने इस तीर्थ राज प्रयाग में अपने प्राणों का त्याग किया है। इस धरती से सभी को प्रस्थान करना है परन्तु प्रयाग की धरती से प्रस्थान करना पापों से मुक्त होना है।
अखाड़ा परिषद् के अध्यक्ष, महंत रविन्द्र पुरी जी महाराज ने सन्यासियों, पूज्य संतों व महंतों की ओर से मोक्ष प्राप्त करने वाले श्रद्धालुओं को भावपूर्ण श्रद्धाजंलि अर्पित करते हुये कहा कि यह उन भक्तों का बलिदान है। संत अपनी 12 वर्षों की तपस्या का फल मां गंगा की शुद्धता के लिये समर्पित करते हंै। महाकुम्भ, श्रद्धा का सैलाब और माननीय योगी जी की निष्ठा और प्रशासन की कर्मठता का दिव्य परिणाम है। इस अवसर पर उन्होंने प्राचीन काल से कुम्भ के आयोजन के विषय में जानकारी प्रदान की। अखाड़ा, सनातन की परम्परा का दिव्य दर्शन कराता है। उन्होंने सभी पुण्यात्माओं को पुनः श्रद्धाजंलि अर्पित की।
परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि कितने भाग्यशाली वे श्रद्धालु है, जाना तो सभी को है परन्तु जाना कैसे हैै। आज पूज्य संत व महंत एक साथ एक मंच पर आकर उन पुण्य आत्माओं को श्रद्धाजंलि अर्पित कर रहे हैं। जिनके लिये संत चिंतित है, संत जिन्हें श्रद्धाजंलि अर्पित कर रहे हैं वे वास्तव में अत्यंत भाग्यशाली है। उनके जाने से हम सभी दुःखी हंै। उन्हें जाना तो था परन्तु संगम की धरती पर गये, वें मरे नहीं हैं उन्हें मोक्ष प्राप्त हुआ और जो हताहत हुये हैं वे स्वस्थ होकर घर लौंटे उसके लिये हम सभी प्रार्थना कर रहे हैं। हम सभी को मिलकर इस महाकुम्भ को सफल बनाना है।
पूज्य जगद्गुरू ंरामभद्राचार्य जी महाराज के उत्तराधिकारी आचार्य रामचन्द्रदास जी महाराज जी ने कहा कि लुप्त सरस्वती पूज्य संतों की वाणी से प्रकट हो रही हंै। आज संत सम्मेलन का उद्देश्य जिन श्रद्धालुओं ने मौनी अमावस्या के दिन प्राण त्याग किये उनकी आत्मा की शान्ति के लिये समर्पित हैं। तीर्थ राज प्रयाग प्रयाण की धरती है, उन दिव्य आत्माओं के प्रयाग में शरीर छोड़ने का दुःख पूरे संत समाज को हैं। उन्होंने आगामी विशेष तिथियों में सावधानी से प्रशासन के आदेशों का पालन करते हुये अनुशासन के साथ स्नान करने का संदेश देते हुये कहा कि इस दिव्य घरा पर आना ही पुण्य है। इस कुम्भ की धरा से सभी का सुरक्षित जाना जरूरी है।
पूर्व सांसद, वर्तमान विधायक महंत बालकनाथ जी महाराज ने कहा कि स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व के भक्तों को महाकुम्भ के दर्शन कराने का अवसर प्रदान कराया है। महाकुम्भ, सनातन का सबसे बड़ा आयोजन है और इसकी जिम्मेदारी आप और हम सब की है। आज पूरे विश्व की सभ्यताओं का संगम भी संगम की भूमि में हो रहा है। सभी सभ्यतायें किसी न किसी रूप से प्रयाग के संगम में गोता लगा रही है।
कल की घटना हम सभी को अपनी जिम्मेदारियों का अहसास कराती है और षड़यंत्रों की ओर भी हमारा ध्यान आकर्षित करती है। यह हमारी संस्कृति की एकता को खंडित करने का षड़यंत्र भी हो सकता है। हमें संकल्प लेना होगा कि हम स्वयं अपने कुम्भ की जिम्मेदारी लेंगे, नियमों का पालन भी करें और सावधान भी रहंे। जिन भक्तों का देवलोक गमन हुआ है उनकी आत्मा संगम के आचंल में हैं और उनके परिवार जनों का कल्याण हो। आने वाले कुम्भ में और व्यवस्थायें आगे बढ़ें इसके लिये कार्य करना है। संगम की रज में भी स्नान करने का उतना ही पुण्य प्राप्त होता है जितना संगम में स्नान करने से मिलता है।
साध्वी चित्रलेखा जी ने कहा कि असंख्य महापुरूषों का दर्शन एक धरा होना, उनकी कृपा एक साथ प्राप्त होने का सौभाग्य हमें अवसर प्राप्त हुआ है। कल जो दुःखद घटना घटी वह दुःखद है हम उन सभी परिवारोें के साथ हैं।
महर्षि महेश योगी जी के कृपापात्र डा गिरिश योगी जी ने कहा कि महाकुम्भ, सनातन की गाथा गा रहा है। जीवन आनंद है, जीवन संघर्ष के लिये नहीं है। भारत में दो बातें बहुत महत्वपूर्ण रही है योग व यज्ञ। योग व यज्ञ का संगम पूरे कुम्भ में हो रहा है। प्रयाग, आनंद की भूमि है।
डा साध्वी भगवती सरस्वती जी ने कहा कि हमें पूज्य संतों के चरण, शरण व छाया में बैठने का अवसर प्राप्त हो रहा है। पूज्य संत कभी अपने लिये नहीं बल्कि दूसरों के लिये जीते हैं। पूज्य संतों ने सदियों से चली आ रही परम्परा को अपने भक्तों के लिये बदल दिया। मेरे जीवन व अनेकों के जीवन में गुरू कृपा से अद्भुत परिवर्तन हुआ। सनातन संस्कृति सभी का स्वागत व अभिनन्दन करती है।
प्रयाग की धरती से आये फलाहारी बाबा जी ने कहा कि प्रयागराज में जिन श्रद्धालुओं का शरीर शांत हुआ उन्हें मृतक न कहा जाये बल्कि वे तो सीधे भगवत धाम को गये। सभी भक्त जो अब हमारे साथ नहीं है उन्हें कोटि-कोटि नमन। महाकुम्भ जैसा मेला विश्व में कभी नहीं हुआ। प्रभु सभी भक्तों को कष्टों से मुक्त करें। सनातन धर्म के भक्तों में अत्यंत श्रद्धा है। धन्य है सनातन धर्म।
राजस्थान की धरती से आये स्वामी अभयदास जी महाराज ने कहा कि सनातन धर्म संवेदनहीन नहीं है। सनातन कभी किसी के साथ गलत नहीं होने देते। सनातन धर्म सत्य, प्रेम व करूणा का योग है। संगम की भूमि से संतों ने करूणा का भाव दिखाया है। सनातन, समर्पण का उत्सव है। प्रयाग शरीर की पवित्रता को संकल्पबद्ध करने का उत्सव है। संगम की धरती पर भारत की विभिन्न परम्पराओं का संगम हो रहा है। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी द्वारा किये जा रहे कार्यों का परिणाम आगे आने वाले 500 से अधिक वर्षों तक रहेगा।
सभी पूज्य संतों ने आचार्य धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री जी को परमार्थ निकेतन की ओर से गंगाजली भेंट की।